Thursday, December 8, 2011

संवेदना के पते पर आत्मीयता की पाती

नया बैंक खाता खुलवाने के लिए वोटर आईडी, मार्कशीट समेत अन्य दस्तावेज तलाश रहा था, तभी अचानक एक काफी पुराने कागज पर नजर पड़ी। गौर से देखा तो पाया करीब बीस बरस पुरानी एक चि_ी है, जो मौसी ने भेजी थी। पढ़ते-पढ़ते पुरानी यादों में खो गया। 

बात बाईस बरस पुरानी है। पिताजी नौकरी की तलाश में मंडीदीप चले आए थे। मम्मी और छोटा भाई भी उनके साथ ही आ गए थे। मैं दादा-दादी के साथ गांव में ही रह गया था। सालभर बाद मैं भी मंडीदीप आ गया। मेरी मौसी मुझे यहां लाई थीं। तब मैं चौथी क्लास में पढ़ता था। गांव से यहां आने के बाद दादाजी और अन्य रिश्तेदारों का हाल-चाल जानने, कुशलक्षेम पूछने का एक ही जरिया होता था - चि_ी। 

मोबाइल तो तब होते नहीं थे, टेलीफोन भी आम नहीं थे। मां बोलतीं और मैं बड़े ध्यान से चि_ी लिखता था, ताकि कोई गलती न हो जाए। चि_ी लिखने का एक खास तरीका होता था। जैसे सबसे पहले बड़ों को चरण स्पर्श, प्रणाम, फिर ‘आगे हाल मालूम होवै’ जैसे जुमलों से अपनी बात कहना, अपने हाल बताना, फिर उनके हाल जानना। अंत में छोटों को ढेर सारा प्यार लिखना होता था। चि_ी लिखने में भी कोई कम समय नहीं लगता था, पूरे दो घंटे चाहिए होते थे। लिखने के बाद लाल डिब्बे में डालने के साथ ही शुरू हो जाता था डाकिये का बेसब्री से इंतजार। खाकी वर्दी में सजा-धजा डाकिया, पोस्टमैन बाबू, डाक वाले भैया... जाने कितने नाम, पर काम सिर्फ एक पैगाम पहुंचाना, संदेश देना। घर के बाहर जब भी साइकिल की घंटी की ट्रिन-ट्रिन सुनाई दे या दरवाजे की कुंडी बजे, यही लगता कि चि_ी आ गई। सच पूछा जाए तो डाकिया बाबू के भी बड़े भाव हुआ करते थे, क्योंकि सुख-दुख की खबरों के खजाने की चाबी उसी के तो पास हुआ करती थी। जब कभी चीठी  आ जाए और डाकिया नाम लेकर कहे कि फलां बाबू, तुम्हारी चि_ी आई है तो हम मारे खुशी के आसमान सिर पर उठा लिया करते थे। एक खुशी चि_ी मिलने की और दूसरी डाकिया बाबू द्वारा नाम लेकर बुलाने की।चीठी को कमीज की जेब में रखकर हम कुछ इस तरह अकड़कर चलते मानो पूरे मोहल्ले में सिर्फ हमारी हीचीठी आई हो। घर जाकर बड़ी उत्सुकता से चि_ी खोलकर देखते कि किसने क्या लिखा है। सबसे पहले तो यही पढ़ते किचीठी में हमारे बारे में क्या लिखा गया है। जब भी कोई चीठी आती, उसे कई दिनों तक बड़ी हिफाजत से संभालकर रखते थे। 

यह सब सोच ही रहा था कि मम्मी ने आकर टोका : इस पुराने कागज को पढ़ते-पढ़ते कहां खो गए हो? मम्मी को बताया मौसी की पुरानी चि_ी है। पढ़कर लगता है समय कैसे तेजी से पंख लगाकर उड़ जाता है। कल तक जिस डाकिया बाबू की खूब पूछपरख और आवभगत हुआ करती थी, उसे आज कोई पूछने वाला भी नहीं बचा। कोई चि_ी भी नहीं लिखता। संचार क्रांति के साधनों ने चि_ी और डाकिये को गुजरे जमाने की चीज बना दिया। उन साधनों को प्रणाम, जिन्होंने दुनिया को समेटकर एक वैश्विक समुदाय बना दिया है, किंतु चि_ियों में जो निजता का संस्पर्श होता था, आत्मीयता की जो भीनी गंध होती थी, और जो एक विशिष्ट देशज स्थानिकता होती थी, उसकी तुलना इनसे नहीं की जा सकती। अतीत का एक मोह होता है और अतीत का रोमान भी होता है। यह ऐतिहासिक प्रक्रिया का अनिवार्य अंग है कि समय के साथ कुछ चीजें हाशिये पर चली जाती हैं और कुछ चीजें केंद्रीयता ग्रहण कर लेती हैं। लेकिन चि_ियों जैसी अब लगभग भूली-बिसरी हो चुकी चीजों को याद करने का एक अर्थ यह भी है कि हम अपने भीतर की संवेदनशीलता की नमी को जुगाए और बचाए रखें। चि_ियों की याद हमारी संवेदना के पते पर एक आत्मीय पाती है। 

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