Tuesday, October 2, 2012

विकास की अपार संभावनाओं से परिपूर्ण गरियाबंद जिला

गरियाबंद जिला का मानचित्र 


















प्रशिद्ध भूतेश्वर नाथ शिवलिंग विश्व का सबसे बड़ा स्वयम्भू शिवलिंग 

 विकास की अपार संभावनाओं से परिपूर्ण गरियाबंद को जिले का दर्जा मिलने पर अब वहां जनता की तरक्की और खुशहाली का नया दौर शुरू होने जा रहा है।
कुछ क्षेत्र जो अभी तक जिला मूख्यालय अविभाजित रायपुर से काफी दूर पर स्थित थे उन्हे भी अब विकास की एक नई किरण नजर आने लगी है। क्षेत्र मे कई ऐसे क्षेत्र है, जहां अभी तक विद्युत व्यवस्था भी नहीं पहुंच पाई है। सड़क व्यवस्था स्कूल के जैसे अनेक सुविधा से वंचित थे। उन्
हे अब विकास की झलक दिखाई देने लगी, पूर्व में गरियाबंद जिला जब रायपुर जिले में था तब कई ऐसे गांव जैसे देवभोग, रसेला, लिटीपारा,नवागढ़ ,अमली पदर , गोहरा पदर उरमाल मैनपुर    के वासी अपने आप को जिला मुख्यालय से काफी दूर महसूस करते थे, परंतु रायपुर जिला से अलग होने के गरियाबंद स्वयं जिले के रूप में अपने अस्तित्व में आ गया हैं, गरियाबंद रायपुर जिला से अलग होने के बाद विकास तो होगी ही वहीं इस क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संपदा छिपी हूई है, इसके कारण भी क्षेत्र का विकास अधिक होगा गरियाबंद जिला में राजस्व की प्राप्ति हो काफी मात्रा प्राप्त होगा ही, प्राकृतिक संपदा में हिरा अलेकजेन्डर, हरा सोना तेन्तुपत्ता, आमामोरा में औशधि, क्षेत्र में निर्मित   सिकासार बांध आदि है। जिन्हें देखकर क्षेत्र को अत्यधिक विकसित क्षेत्र के रूप में देखा जा सकता है। विकास कार्यो में क्षेत्र की तस्वीर बदल गई है। अब वन आंचल गरियाबंद क्षेत्र को सम्पूर्ण जिला बनाकर विकास की दृश्टि कोण से छत्तीसगढ़ राज्य में प्रथम जिला के रूप में उभर कर सामने आऐ यही गरियाबंद जिला में आने वाले पांचों ब्लाक के गरियाबंद, फिगेष्वर, छुरा, मैनपुर, देवभोग, की जनताओं का शासन प्रशासन से यही दरकार हैं। सड़क, शिक्षा, व स्वास्थय की मूलभूत दिक्कते राज्य निर्माण के बाद कुछ हद तक दूर हुई है। अब जिला बनने के बाद मूल भूत सुविधा के साथ प्रशासनीक कसावट आने से तेजी से अग्रसर होने की संभावनाएं आम नागरिक रखते हैं। जिलेका गौरव सिकासार डेम 1977 में निर्माण हुऐ सिकासार डेम गरियाबंद क्षेत्र के किसानों के लिए वरदान साबीत हुआ है। सिकासार डेम की उपयोगिता किसी से छुपी नही हैं। इस डेम का भराव छमता 1333 एमसीएफटी हैं। जिससे साढे 400 सौ ग्रामों के लगभग 29 सौ हैक्टेयर खेतों में सिकासार डेम के पानी से फसल लहलहाती है। इससे किसानों को चिन्ता नही रहती। ग्रीश्म कालीन रवी फसल के लिए किसानों को पर्याप्त मात्रा में पानी मिल जाता है। इस तरह एक नही दो-दो फसल लेते है। जो गौरव की बात है। शिक्षा के लिए पर्याप्त महाविद्यालय मुख्यमंत्री रमन सिंह के सौगात से गरियाबंद जिला में कला विज्ञान, कामर्स, आईटीआई, साईस, शासकीय पलेटेक्निक कालेज षूरू हो चुका हैं वही छुरा, देवभोग में भी शासकीय कालेज शिक्षा अध्यन कर रहे छात्र। बस कमी हैं तो विशय वार शिक्षकों की चाहे वह प्राथमीक शाला से लेकर उच्च शिक्षा तक की बात हो। जिला बनने के बाद लोगों में आशा की एक नई किरण कि अब उक्त शिक्षा के लिए शिक्षकों की गरियाबंद जिला में शिक्षा के दृश्टि कोण से पीछे नही रहेगा। वहीं किसी भी क्षेत्र का विकास वहां कि शिक्षा से होता हैं।
गरियाबंद जिले में पाए जाने वाला गौर 

गरियाबंद के ऊपर कलिछाव इसी जगह पर  गरियाबंद को डुबाने वाली योजना बनने वाली है बरूका है डेम 


छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु वनभैसा का  ओरिजनल ब्रिड सिर्फ गरियाबंद  जिले में पाया जाता है

प्रशिद्ध झरना देवधारा

जिले का प्रमुख आय  का जरिया  हरा सोना तेन्तुपत्ता

 वन संपदा से परिपूर्ण गरियाबंद के कुछ हिस्सों को छोड़ दे तो प्राय: वनआच्छादित जिला कहलाने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। वही वन संपदा के साथ जैसे बेस किमती इमारती लकड़ीयों के साथ-साथ अनेक प्रकार के वनोशोधि क्षेत्रों में बहुताऐ रूप में पाऐ जाते है। यहां वनों उपज से संबंधित उद्योगों की सम्भावनाएं बलवती होने लगी है। लोगों में जिससे वन आंचल के आय के साथ-साथ बेरोजगारी भी दूर होगा। हिल स्टेषन जिला मुख्यालय से 75 किमी दूर स्थित पहाडी पर बसा आमामोरा किसी हिल स्टेषन से कम नही है। यहां कि प्राकितिक छटा देखते ही बनती है। समुद्र तल से 2000 फिट की उचाई पर बसा आमा मोरा को ग्राम पंचायत का दर्जा तो हासील है। लेकिन आज तक यहां के कमार भंजियां जन जाति के लोग जंगल से ही गुजर बसर करते हैं जो विकास से अब भी पीछे है। अदभूत झरने और प्राकितिकसौदर्य- दुर्गम पहाडी पर अदभूत झरने देखने को मिलते है। जोवपारा के पास कलराव गीत गाता झरना, फरीपगार, आमामोरा के पास डरावनी अवाज करता झरना, ओड के पास बनियाधस जो मोतियों की माला बनाता प्रतीत होता है। प्रकृति ने आमामोरा पहाडी को खूबसूरत बनाया है। ऊचे-ऊचे पहाड़ घने वन कलकल करती नालों का संगीत बरबस ही मन को षाति प्रदान करती है। वन परिक्षेत्र धवलपुर को अंतर्गत वनों से ढके होने के कारण आमामोरा, ओड़ में हिरण, बारहसिंगहा , जंगली सुवर, भलु, सोनकुत्ता, तेदुआ, नीलगाय, अंधिकाष पाए जाते है। उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व नवगठित जिला में एक और उपलब्धी केन्द्रशासन द्वारा प्रायोजित उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व भी अस्तित्व में आ गया है। नवगठित उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में आने के बाद क्षेत्रों मे वन जिवों के संरक्षण के प्रयास तेज हो गये हैं। एक जनवरी 2012 से गठित टाइगर रिजर्व कुल आठ रेंज का उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व बन गई है। जिसमें बाघ के साथ तेंदुआ, निलगाय, हिरण, तथा वनभैसा, की गणणा की जाऐगी। बेस किमती हीरा खदान गरियाबंद जिले के मैनपुर थाना अंतर्गत प्रदेश की बहुचर्चित पयली खण्ड़, सोनमुडा, की हीराखदान है। जहां अवैध खुदाई तस्करों के द्वारा किया जा रहा हैं । जिला बनने के बाद इसकी सुरक्षा के लिए विशेष दयान दिये जोन से ही इस जिले के किमती हीरा को सुरक्षा निष्चित हो पाईगी। एसी संभावनाएं आम लोगों द्वारा नये जिले गरियाबंद के निर्माण होने से है।
 
माँ जतमाई प्रकृति का अनूठा नजारा 

गरियाबंद जिले में पाए जाने 

हिरा खदान का मेन गेट 

सिकासार बांध

Tuesday, September 25, 2012

आने वाले समय में नाव की सवारी एक तरह से लोगों के लिए स्मृति मात्र रह जाएगी।

 आज भी पैरी नदी के मोहेरा घाट पर नाव दो जिलों को जोडऩे का सेतु बन रहा है। बीते रवि वार को मै अपने साथी विजय सिन्हा के साथ घुमते घूमते गरियाबंद जिला मुख्यालय से ७ की मिदुर मोहेरा घाट पहुचे वहा नाव को चलता देख बाद ही आश्चर्य और ख़ुशी भी हुई वहा हम लोगो ने नाव का सफ़र किया और नाव में उपस्थित लोगो से चर्चा किया तो बताये की गरियाबंद और धमतरी जिले को जोडऩे के लिए यहां नाव का सफर ही वर्षों से एक
 अनूठा रिश्ता कायम किए हुए है। आजादी के इतने वर्षों बाद भी ग्रामीणों को नाव से नदी पार करके गांव जाना पड़ रहा है। नाव के सेतु ने दोनों जिलों के जिन संबंधों की बुनियाद रखी है उसे और मजबूती देगा यह नया बनने वाला पुल। व्यापारिक व सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस नदी के निर्माणाधीन पुल से विकास को गति मिलना तय है। 



ग्रामीणों में खुशी इस बात की है कि राज्य सरकार ने उनकी सुध ली है। पुल के निर्माण से नाव का सफर नहीं करना पड़ेगा। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पुल का निर्माण हो रहा है। गरियाबंद और धमतरी जिले को जोडऩे के लिए यही नाव का सफर ही वर्षों से एक अनूठा रिश्ता कायम किए हुए है। आजादी के इतने वर्षों बाद भी ग्रामीणों को नाव से नदी पार कर कर गांव जाना पड़ रहा है। इन दिनों नदी में लोगों को नाव के सहारे इधर से उधर जाते देखा जा सकता है। धमतरी जिले का ग्राम मोहेरा पैरी नदी के मुहाने पर गरियाबंद के नजदीक बसा है।

उल्लेखनीय है कि ग्रामीणों के लिए नाव की यह सवारी वर्षों पुरानी है। अब एक दो वर्षों के भीतर ही नाव का यह सफर भी इन्हें नहीं करना पड़ेगा क्योंकि 9 करोड़ की लागत से बड़े पुल का निर्माण किया जा रहा है। फिलहाल इसका कार्य अधूरा है। नाव चलाने वाले महेश कमार ने बताया कि रात सात बजे तक वह नाव से लोगों को नदी पार कराते हैं। वहीं ग्रामीण योगेश्वर ने बताया कि आने-जाने के नाव का किराया बीस रुपए है। यह ग्राम मगरलोड जनपद पंचायत के अधीन पड़ता है।

मोहेरा के आसपास करीब 7 ग्राम पड़ते हैं जो गरियाबंद से समीप हैं। यहां के लोगों की आवाजाही गरियाबंद रोज होती है। क्षेत्र के स्कूली बच्चे भी गरियाबंद करने नाव से ही जाते हैं। इसके अलावा व्यापारिक दृष्टिकोण से धमतरी जिले के समस्त ग्राम गरियाबंद से जुड़े हैं। सभी का सेतु नाव ही है। आने वाले समय में नाव की सवारी एक तरह से लोगों के लिए स्मृति मात्र रह जाएगी।
 








Wednesday, May 23, 2012

मालगांव पहाड़ी पर ही बनेगा कलेक्टोरेट

                                                    मालगाव के पहाड़ी के ऊपर से मनोरम नजारा 






जिला बनने के चार माह के बाद अब यह तय हो गया है कि कलेक्टर का स्थायी दफ्तर मालगांव की पहाड़ी पर ही बनेगा। कलेक्टर दिलीप वासनीकर की मौजूदगी में अधिकारियों की मंगलवार को हुई है बैठक में अधिकारियों ने एक राय होकर इसकी घोषणा की। वर्तमान ने कलेक्टर का अस्थायी दफ्तर कालेज भवन से संचालित हो रहा है। 

बैठक में राज्य शासन को एक सप्ताह के भीतर कंपोजिट जिला कार्यालय का भवन बनाने का प्रस्ताव भेजने का निर्णय लिया गया। मालगांव पहाड़ी में करीब 110 एकड़ शासकीय भूमि है। इस स्थल पर कलेक्टर भवन के समस्त दफ्तर बनाने सभी अधिकारियों की राय ली गई। आखिर में आमराय से नगर में जगह की कमी के चलते पहाड़ी को कलेक्टोरेट के लिए उपयुक्त माना गया। कलेक्टर ने जल संसाधन के कार्यपालन यंत्री विजयकुमार शेष त्न पेज १६ 

वच्छानी और पीएचई के नोडल अधिकारी जीएल गुप्ता को मालगांव पहाड़ी के नीचे एनीकट बनाकर ऊपर जिला कार्यालय भवन व गरियाबंद शहर को पानी प्रदान करने के संबंध में प्रोजेक्ट तैयार करने के निर्देश दिए। 

उल्लेखनीय है कि मालगांव पहाड़ी में स्थायी दफ्तर बनाने संघर्ष समिति तक बनाई गई, जिसने अनेक बार प्रशासन को ज्ञापन भी दिया। रायपुर कलेक्टर रोहित यादव ने तो पहले ही मालगांव पहाड़ी को जिला कार्यालय बनाने फाइनल कर दिया था। गरियाबंद से चार किमी दूर पैरी नदी के बाद पहाड़ी स्थित है। यहां जाने के लिए वर्तमान में कच्ची सड़क है। यह स्थान राज्यमार्ग से लगा हुआ है। जिससे यहां तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए यही कलेक्टर दफ्तर बनाने का निर्णय लिया गया। यह पहाड़ी खूबसूरत लोकेशन में है। कई बार सर्वे करने के बाद अधिकारियों ने मालगांव पहाड़ी को ही जिला दफ्तर बनाने के लिए चयनित किया है। 

Tuesday, May 15, 2012

गर्मी में आम लोगों की भ्रांति ही पशु-पक्षी भी पानी के लिए तरस रहे हैं।

 गर्मी में आम लोगों की भ्रांति ही पशु-पक्षी भी पानी के लिए तरस रहे हैं। भटक रहे हैं।तेज धूप व वाष्पीकरण से नदी, तालाब का जल स्तर तेजी से घट रहा है। इससे आम लोगों के साथ ही पशु-पक्षी भी पानी के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं। इस दौरान पशु-पक्षी भी पानी की खोज में रहते हैं। गांव में गिरते भू-जलस्तर और मानसून के लेट आने से सभी ग्रामीण चिंतित हैं। ग्राम नहरगांव के तालाब में पानी कम है। 
 तालाब में काफी संख्या में मवेशी जमा रहते हैं।
  यहां किसान नदी, नाले में बोर कर खेतों की प्यास बुझा रहे हैं। 
  गांव के छह मासी नाला में किसान बोर कर रबी फसल की सिचाई में पानी का उपयोग कर रहे हैं। इस ब्लॉक के तहत कई गांव हैं।
 गर्मी में आम लोगों की भ्रांति ही पशु-पक्षी भी पानी के लिए तरस रहे हैं। भटक रहे हैं। पानी के लिए संघर्ष करते ऐसे पशु, पक्षियों को इस समय आसानी से देखा जा सकता है। जिला मुख्यालय के पास शनिवार के दोपहर में ग्राम नागाबुड़ा की बोलती ये तस्वीरें कुछ यहीं बयां करती हैं। तालाब के किनारे काफी संख्या में पक्षी एकत्र होकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं। 
        
 नागाबुड़ा तालाब में सड़क के किनारे पक्षी इक्ट्ठा हुए हैं। अपनी प्यास बुझाकर ये पक्षी पानी में अंगड़ाइयां लेते रहते हैं

साल बीज के संग्रहण में जुटे ग्रामीण



अंचल के बीपीएल परिवार और गरीबों का एक मात्र कमाई का जरिया वनोपज संग्रहण कर जीविकोपार्जन करना है। गर्मी में ग्रामीण महुआ, तेंदूपत्ता व साल बीत का संग्रहण करते हैं। पिछले बीस दिनों से जंगल में ग्रामीण तेंदूपत्ते की तोड़ाई कर रहे थे। अब पत्ता कम होने से साल बीज संग्रहण के कार्य में ग्रामीण जुट गए हैं।

  साल बीज की विदेशों में बारी डिमांड है। पूर्व वन मंडल उदंती में साल के वृक्षों की बहुतायत है। साल बीज की खरीदी वन समिति के माध्यम से की जाती है। जानकारों के मुताबिक साल बीज का उपयोग साबुन व चाकलेट बनाने में किया जाता है। इंग्लैंड व जापान में नारियल के मक्खन व चाकलेट उद्योग में बखूबी किया जाता है। 
 साल बीज से हिंदुस्तान में चाकलेट बनाने की अनुमति नहीं है। लिहाजा विदेशों में ही साल बीज से चाकलेट बनाया जाता है। साल बीज का साल्वेंट सयंत्र में प्रसंस्करण कर तेल निकाला जाता है।

           साल बीज की 500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से समिति के माध्यम से खरीदी प्रारंभ हो गई है। 
     

Wednesday, April 18, 2012

आज से छत्तीसगढ़ में ग्राम सुराज का आगाज

किसान रथ के माध्यम से हर दिन हर ब्लाक में  कृषि संगोष्ठी कृषक मेला आयोजित किया जायेगा 
ग्राम सुराज अभियान में सुराज दल गांवों में पहुंच कर दिन-प्रतिदिन की सुविधाओं और शासकीय कार्यक्रमों के क्रियान्वयन से जुड़े लगभग डेढ़ सौ से अधिक सवाल ग्रामीणों से पूछेंगे।
अधिकारी व् जनप्रतिनिधि ग्राम सुराज को सफलता की ओर ले कर चल पड़े  


 सभी विभागों का स्टाल के माध्यम से लोगो को योजनो व् जरुरी जानकारी देते हुए 
आधिकारिक जानकारी के अनुसार अभियान के दौरान गांव की प्रमुख मांगों और समस्याओं की जानकारी एकत्र की जाएगी।राज्य में हर साल आयोजित किए जा रहे ग्राम सुराज अभियान से वास्तव में चमत्कार हुआ है। इस अभियान में शासन और प्रशासन के दूर दराज गांवों तक आम जनता की दहलीज पर पहुंचने से जनहित की अनेक नई योजनाओं का जन्म हुआ है और कई योजनाओं में नियम प्रक्रियाओं का सरलीकरण भी किया गया है।  

Thursday, March 22, 2012

आंकड़ों में मिटी गरीबी

गरीबी की वास्तविक रूपरेखा और विस्तार को लेकर अंग्रेजी राज के जमाने से ही लगातार अर्धसत्?य पेश किया जाता रहा है। आजादी के बाद सरकारों से उम्मीद थी कि कम से कम अब गरीबों के सच को सामने रखकर नीतियों का निर्माण करेंगी और गरीबों की हिस्?सेदारी और हक के प्रति न्?याय का भाव रखेंगी। लेकिन 21वीं सदी के पहले दशक में भी सरकार के नवीनतम अनुमान और मापदंडों से हर समझदार आदमी चकरा जाएगा। आज जब यह कहा जा रहा है कि शहरों में 28 रुपए और गांव में 22 रुपए प्रतिदिन खर्च करने वालों को गरीबी की रेखा से ऊपर मानें, तो देश चौंक गया है। 

अभी कुछ हफ्ते पहले इसी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे में कहा था कि 32 रुपए और 26 रुपए की कमाई करने वाले क्रमश: शहरी और ग्रामीण लोगों को हम गरीबी की रेखा से ऊपर मानें तो बेहतर होगा। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जोड़ी रथ और दांडेकर ने यह पैमाना प्रस्तुत किया था कि हम आमदनी की बजाय अगर उनके लिए जरूरी भोजन में कैलोरी की खपत के मापदंड को इस्?तेमाल करें तो बेहतर होगा क्योंकि वस्तुओं की लागत और कीमत घटती-बढ़ती रहती है। 

रथ और दांडेकर के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में 2100 कैलोरी और शहरी क्षेत्र में 2400 कैलोरी आहार पाने वाले व्यक्ति को हम गरीबी की रेखा से ऊपर मानेंगे तो बेहतर होगा। लेकिन आज यह देखा जा रहा है कि गरीबी के आंकड़ों को लेकर कें?द्र सरकार उन राज्?यों से भेदभाव करने की कोशिश करती है, जहां विपक्षी दलों की सरकारें हैं। केंद्र के अनुदान की मात्रा का घटना-बढऩा इस गरीबी की रेखा से उत्पन्न आंकड़ों पर निर्भर करता है। 

आखिर हम क्या कर रहे हैं। सरकार अगर समाज के सामने सच बोले तो कड़वा से कड़वा सच स्?वीकार करने को भी समाज तैयार होता है। लेकिन अगर सरकार की तरफ से पवित्र भाव से भी अर्धसत्?य बोला जाए तो उसकी स्थिति युधिष्ठिर जैसी होगी। इसी समाज ने युधिष्ठिर जैसे सत्यनिष्ठ व्यक्ति और शासक को उसके अर्धसत्य की वजह से माफ नहीं किया था। 

वस्?तुत: आज देश में गरीबी को लेकर पांच तरह के अनुमान चल रहे हैं। योजना आयोग ने ही दो अनुमान दिए हैं, जिनके अनुसार 21.8 प्रतिशत और 27.5 प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा के नीचे हैं। जबकि इसी सरकार की बनाई अर्जुन सेनगुप्?ता समिति ने यह सिद्ध किया कि 78 प्रतिशत लोगों की क्रय शक्ति 20 रुपए से भी कम है। विश्व बैंक ने कहा है कि भारत में उदारीकरण के 20 साल के बावजूद अभी भी कोई 42 प्रतिशत लोग अत्यंत निर्धन हैं जबकि सुरेश तेंडुलकर कमेटी ने इसे 37 प्रतिशत बताया। 

आंकड़ों का उलटफेर यह दिखाने के लिए है कि सरकार जिस रास्?ते पर चल रही है, उससे गरीबी घट रही है। लेकिन सरकार के इन आंकड़ों पर संदेह करने के वाजिब वजहें हैं कि देश में पिछले 5-7 वर्षों में 8 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से ऊपर उठ गए। अगर ऐसा होता तो सबको दिखाई पड़ता। हां, इतना तो दिखाई पड़ा है कि लगभग 50 लाख लोग बिहार में गरीबी की रेखा के नीचे और चले गए। यह भी दिखाई पड़ रहा है कि उन सभी इलाकों में गरीबी फैल रही है जिसे लाल पट्टी कहा जा रहा है। आंध्र प्रदेश के तटीय गांवों से लेकर भारत-नेपाल सीमा के ग्रामीणों के बीच गरीबी का विस्?तार हो रहा है। गरीबी घटने से माओवाद का असर जरूर घट जाता। 

आज जब गरीबी के सवाल चौतरफा उठ रहे हैं, योजना आयोग का यह दावा हास्यास्पद है कि मौजूदा आर्थिक नीतियों के कारण गरीबी घटी है। ये दावे आज ही नहीं हो रहे हैं। इंदिरा गांधी के जमाने में भी बैंकों के राष्?ट्रीयकरण के जरिए गरीबी हटाने के दावे किए गए। बैंक कर्ज दे रहे थे, लेकिन वह बिचौलियों की जेबों में जा रहा था। परिणामस्वरूप गरीबी हटने की बजाय भ्रष्टाचार के खिलाफ 1974-75 में गुजरात से लेकर बिहार तक सरकार को जन विस्फोट का सामना करना पड़ा। ये आंकड़ेबाजियां महज छलावा के लिए हैं। 

तटस्थ अर्थशास्त्रियों के मुताबिक 15 वर्षों में प्रतिदिन 2400 कैलोरी से कम आहार लेने वालों की ग्रामीण भारत में तादाद 74 प्रतिशत से बढ़कर 2004-05 में ही 87 प्रतिशत हो गई थी। ये आंकड़े बच्?चों व महिलाओं में कुपोषण की भी कहानी कहते हैं जिस पर प्रधानमंत्री को भी कहना पड़ा कि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा कुपोषणग्रस्त लोगों का राष्?ट्र हो गया है। 

यही स्थिति बुनियादी सुविधाओं की है। 40 प्रतिशत से अधिक लोगों के घरों में पीने का पानी या पक्की छत नहीं है। यह भी देखें कि इस बीच पिछड़े तबकों के लिए रोजगार के अवसर घटे हैं वरना मनरेगा के न्यूनतम मजदूरी वाले कामों में इतनी तादाद में लोग नहीं जुट जाते। 

यह रोजगारविहीन वृद्धि का जमाना है, और कृषि में निवेश घटा ै, फिर कहां से गरीबी के खिलाफ लोगों के पास अवसर और साधन आ रहे हैं। आज अगर इसका क्षेत्रीय विस्?तार देखें तो यह जानकर ताज्?जुब होना ही चाहिए कि जिस पूर्वोत्तर प्रदेशों के परिवार को पिछले 15 वर्ष से हर प्रधानमंत्री कोई न कोई पैकेज देता रहा है, उसी प्रदेश में गरीबी के पांव और गहरे जा धंसे हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में निर्धन भारत के एक-तिहाई से अधिक लोग रहते हैं। नए राज्यों में उत्तराखंड को छोड़कर झारखंड और छत्तीसगढ़ की खबर अच्छी नहीं है। 

योजना आयोग में बैठे विशेषज्ञों के दल की यह सनद बस एक ही काम कर सकती है कि कई राज्?यों में गरीबी मिटाने के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों और केंद्र से जाने वाले अनुदान को तत्?काल बंद कर दिया जाए। महंगाई बढ़ाने के लिए 45 हजार करोड़ रुपए के नए टैक्?सों की योजना भी लागू की जानी है। इसके अलावा गरीबी के बारे में देश में एक धुंध फैलाई जाएगी। 

मैं समझता हूं यह पाखंड का व्याकरण है। इससे गरीब अपने को अपमानित और छला हुआ महसूस करेगा। अगर गरीब का गुस्?सा सीधे सरकार को निशाने में लेगा तो हमारे लिए यह शिकायत करने की गुंजाइश नहीं रह जाएगी कि वंचित भारत संविधान की कद्र क्?यों नहीं करता, चुनाव से पैदा सरकारों का अनुशासन क्?यों नहीं मानता, और सरकार पर भरोसा क्यों नहीं रखता?  

Monday, February 27, 2012

भारतीय जनता पार्टी की सोच

भारतीय जनता पार्टी की सोच

आखिर वही हुआ हो हमारी अटल जी की नेत्रित्व वाली सरकार ने जो सोचा था और हर देश यही करने में लगा हुआ है  २००२ में वाजपेयी सरकार ने बनाई थी योजना नदियों को जोडऩे की परियोजना का मूल विचार राजग सरकार के कार्यकाल मे आया था। अक्टूबर, 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उस साल भीषण सूखे की पृष्ठभूमि में इस परियोजना के लिए एक कार्यबल का गठन किया था। भारत में नदियों को जोडऩे के लिए भले ही अब तत्परता दिखाई हो, लेकिन इसकी जरूरत सदियों पहले से महसूस की जा रही है, ताकि बाढ़ और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावी तरीके से निपटा जा सके। पेरियार परियोजना, परम्बिकुलम-अलियार परियोजना, कुरनूल-कडप्पा कैनाल और तेलुगु-गंगा परियोजना आदि कुछ महत्वपूर्ण नदी जोड़ो परियोजनाएं हैं। पेरियार परियोजना 1895 में बनी थी। नदी जोड़ो परियोजना दुनिया के अन्य देशों में भी अपनाई जा रही है। अमेरिका 45 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) पानी ट्रांसफर कर रहा है और 376 बीसीएम के लिए योजना बना रहा है। कनाडा ने 268 बीसीएम के लिए तेजी से काम चल रहा है। इनके मुकाबले भारत में अभी मात्र 10 बीसीएम पानी का ही ट्रांसफर हो रहा है। चीन ने भी नदी जोड़ो परियोजना शुरू कर दी है। 
भारतीय जनता पार्टी की सोच हमेशा विकास ही रही है! विकाश के लिए दूशरा कोई विकल्प ही नहीं है! विनाश के लिए तो सभी बैठे है ! २०१३के लिए सभी लोगो से आह्वान है की विकाश के लिए भारतीय जनता पार्टी चुने ! केंद्र से विनाशकारी नित वाली सरकार को उखाड फेके !

Saturday, February 18, 2012

कल हम लोग देभोग क्षेत्र में प्रवास पर थे ! देभोग की ओर आगे बढ़ रहे थे तो देखा की डुमरपड़ाव मोड़ में उदंती के पहले शारदा कंपनी की बस और ट्रक का आमने सामने से भिडंत हुआ था  जिसमे ९ लोग जो की बस के केबिन में बैठे थे गंभीर रूप से घायल हो गए ! उस  इलाके में संचार सुविधा नहीं होने के कारण लोग १०८ में फोन नहीं कर पा रहे थे राह चलते लोगो में से कुछ लोग आगे जा कर १०८ में फोन कर संजीवनी एक्सप्रेस बुलाया लेकिन घटना क्षेत्र मैनपुर से ३५ की मी  दूर होने के कारण उसे पहुचने में देरी हो रही थी तभी उस इलाके के एस डी ऍम चौधरी जी मैनपुर से देवभोग जा रहे थे पहुचे ! उन्हों ने घायलों को तत्काल इलाज हेतु मैनपुर भेजने की वाव्स्था करते हुए सभी घायलों को दुसरे बस में ले जाने का निर्देश दिया ! १० - १२ की मी जाने के बाद संजीवनी एक्सप्रेस आता हुआ दिखाई दिया उसे रोक कर सभी मरीजो को उसमे सिफ्ट किया गया तथा उनका प्रारंभिक उपचार किया गया !






घटना की जानकारी जैसे ही १ किमी दूर ग्राम उदंती के लोगो को पता चला की घायल व् यात्रियों को पानी की सक्त जरुरत है और वहा पानी की उपलब्धता नहीं है तो उदंती ग्राम की महिलाये बाल्टी गुंडी में पानी ले कर पैदल ही १.५ किमी पहुच कर घायलों की सेवा की वास्तव में उदंती ग्राम की महिलाओ की जो सेवा देखने को मिला वैसा कही नहीं मिलता है !    

Monday, January 23, 2012

गरियाबंद जिला निर्माण --


१५/अगस्त/२०११ को हमारे प्रदेश के मुखिया रमन सिंह ने राज्य में नौ नए जिलों का गठन करने की घोषणा की है।जिसमे हमारा गरियाबंद भी शामिल है 

हमारे प्रदेश के मुखिया  रमन सिंह ने प्रदेशवासियों को आज स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर नौ नए जिलों की ऐतिहासिक सौगात दी। पुलिस परेड मैदान रायपुर में आयोजित स्वतंत्रता दिवस के राज्य स्तरीय मुख्य समारोह में गरियाबंद,  सुकमा, कोंडागांव, बलौदाबाजार, बालोद, बेमेतरा, मुंगेली, सूरजपुर और बलरामपुर को नया जिला बनाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि यह जिले जनवरी 2012 से अस्तित्व में आ जायेंगे। वास्तव में ये उनका अद्भुत और सभी को अस्चर्य में डालने वाला सौगात उनकी उच्च सोच और जनता के लिए कार्य करने की इच्छा सकती को प्रदर्शित करता है उक्त  घोषणा  के बारे में तो लोगो ने सपने में भी नहीं सोचा था की माँ. सिंह जी नए जिले की वो भी एक साथ नौ जिलो की  घोषणा  करेंगे जानकर लोग कहते है की इस घोषणा के जानकारी छत्तीसगढ़  शासन के एक भी मंत्री या विधायक को नहीं था सब कुछ गोपनीय था किसी को भी कानो कान खबर नहीं हुई वास्तव में यह एक ऐशी घोषणा थी जो की घोषणा ही नहीं वरन छत्तीस गढ़ के जनता के लिए बहुत ही बड़ा उपहार था  
नए जिले बनने  शासन-प्रशासन को जनता के नजदीक पहुंचाने के लिए यह ऐतिहासिक फैसला उनकी सरकार ने लिया है, जो राज्य के प्रशासनिक इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा। 

मुख्यमंत्री द्वारा आज घोषित नौ नए जिलों को मिलाकर छत्तीसगढ़ में राजस्व जिलों की संख्या 27 तक पहुंच जाएगी। सिंह ने इसके पहले वर्ष 2007 में नारायणपुर और बीजापुर को जिले का दर्जा दिया था। उनके नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा पिछले चार सालों में गठित किए गए जिलों की संख्या अब 11 तक पहुंच जाएगी। 

Friday, January 13, 2012

नये जिले के निर्माण से बदलेगी अंचल की तस्वीर : डॉ रमन सिंह , मुख्यमंत्री ने कलेक्टोरेट के उदघाटन के साथ किया नये गरियाबंद जिले का शुभारंभ


रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ हुई नये जिले की शुरूआत
रायपुर, 11 जनवरी 2012
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा है कि जन-सुविधाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए राज्य सरकार ने नये जिलों का निर्माण किया है। उन्होंने कहा कि गरियाबंद जिले के निर्माण से आदिवासी बहुल अंचल की तस्वीर बदलेगी और यहां विकास का नया दौर शुरू होगा। जनता के जीवन में खुशहाली आएगी। सबसे बड़ी बात यह है कि दिन-प्रतिदिन के कामों के लिए लोगों को ज्यादा दूरी तय नहीं करना पड़ेगा। मुख्यमंत्री ने आज दोपहर प्रदेश के नवगठित गरियाबद जिले का शुभारंभ करते हुए एक विशाल जनसभा में इस आशय के विचार व्यक्त किए । उन्होंने इस अवसर पर गरियाबंद के कलेक्टर और जिला दण्डाधिकारी के कार्यालय (कलेक्टोरेट) का भी शुभारंभ किया। आंचलिक लोक नर्तक दलों और स्कूली बच्चों के रंग-बिरंगे सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ हजारों की संख्या में किसानों, मजदूरों और आम नागरिकों की उत्साहजनक चहल-पहल के बीच जिला उत्सव के रूप में नये जिले की ऐतिहासिक शुरूआत हुई। डॉ. रमन सिंह ने इस अवसर को यादगार बनाने के लिए नये गरियाबंद जिला प्रशासन द्वारा प्रकाशित स्मारिका का भी विमोचन किया। मुख्यमंत्री ने भारी संख्या में उपस्थित जनसमूह का अभिवादन किया और सभी लोगों को बधाई और शुभकामनाएं दी। उन्होंने जिला उत्सव में रंगबिरंगे गुब्बारे उड़ाकर लोगों के उत्साह को  दोगुना कर दिया।
    मुख्यमंत्री ने विशाल जनसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि गरियाबंद को जिला बनाने की मांग पिछले कई वर्षों से की जा रही थी। यहां के जनप्रतिनिधियों ने जनता की इस मांग के बारे में पर राज्य सरकार को अवगत कराया । जनभावनाओं का सम्मान करते हुए प्रदेष सरकार ने गरियाबंद को जिला बनाने का निर्णय लिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है। यहा वनोपज और खनिज संपदा की कोई कमी नहीं है।  प्रदेष सरकार ने हाल के वर्षों में यहां विकास के अनेक कार्य किए हैं। जिला बनने के बाद अब इसमें और भी ज्यादा तेजी आएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि गरियाबंद जिले का देवभोग अपने पूर्ववर्ती रायपुर जिला मुख्यालय से लगभग सवा दो सौ किलमीटर की दूरी पर था अब यह दूरी घटकर लगभग आधी रह गई है। निश्चित रूप से यह जनता की सुविधा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। डॉ. सिंह ने कहा कि उनकी सरकार जनता की ताकत पर विश्वास करती है। जनता की भावनाओं के अनुरूप और जनता की ताकत के बल पर ही हम अपनी नीतियां बनाते और निर्णय लेते हैं। नये जिलों का निर्माण का निर्णय भी इसी आधार पर लिया गया है। डॉ. रमन सिंह ने कहा कि उनकी सरकार नारों पर नहीं बल्कि काम पर विश्वास करती है। छत्तीसगढ़ की सरकार जनता के हित में काम करने वाली सरकार है। यही कारण है कि जनता ने हम पर विश्वास किया है और हम जनता के इस विश्वास को हमेशा कायम रखेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि नए गरियाबंद जिले के विकास के लिए राज्य सरकार सभी संसाधन उपलब्ध कराएगी।  इससे  जल्द से जल्द अंचल का पिछड़ापन दूर होगा और यह  इलाका विकास की मुख्य धारा से जुड़ेगा। यहां कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक के कार्यालय आज से शुरू हो गए हैं और बहुत जल्द विभिन्न विभागों के लगभग 32 जिला स्तरीय कार्यालय भी यहां खुलेंगे। निकट भविष्य में यहां कृषि विज्ञान केन्द्र और केन्द्रीय विद्यालय की भी स्थापना होगी। इससे गरियाबंद क्षेत्र की जनता को सरकारी कार्यों के लिए या जिला स्तरीय शासकीय दफ्तरों से सेवाएं प्राप्त करने के लिए अब रायपुर नहीं जाना पडेग़ा। जिला स्तर के अनेक सरकारी कार्यालय यहां खुलेंगे। बहुत जल्द यहां जिला पंचायत का गठन होगा। इसके साथ ही यहां सरकारी कामकाज बढ़ेगा और व्यवसायिक गतिविधिया भी बढ़ेंगी। इसके फलस्वरूप स्थानीय बेरोजगारों के लिए रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होंगे। डॉ. रमन सिंह ने नये जिले की सामाजिक-सांस्कृतिक, भौगोलिक और प्राकृतिक विशेषताओं पर भी प्रकाश डाला। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि गरियाबंद इलाके में बिजली के कम वोल्टेज की समस्या को दूर करने के लिए राज्य सरकार ने यहां दस करोड़ रूपए की लागत वाले 132 के.व्ही. क्षमता के विद्युत उपकेन्द्र की स्थापना के प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है। इसके टेंडर की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। इस उपकेन्द्र का निर्माण वर्ष 2013 तक पूर्ण करने का लक्ष्य है।
    लोकसभा सांसद श्री रमेश बैस की अध्यक्षता में आयोजित गरियाबंद जिले के शुभारंभ समारोह में कृषि और श्रम मंत्री श्री चंद्रषेखर साहू, स्कूल शिक्षा और लोक निर्माण मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल और चंदूलाल साहू, विधायक श्री डमरूधर पुजारी, राज्य नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष श्री लीलाराम भोजवानी, छत्तीसगढ़ श्रम कल्याण मण्डल के अध्यक्ष श्री अरूण चौबे औरजला पंचायत रायपुर की अध्यक्ष श्रीमती लक्ष्मी वर्मा सहित अनेक जनप्रतिनिधि उपस्थित थे। नये गरियाबंद जिले के कलेक्टर श्री दिलीप वासनीकर ने मुख्यमंत्री सहित सभी विशिष्टजनों का स्वागत करते हुए नये जिले का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इस अवसर पर रायपुर संभाग के कमिश्नर श्री के.डी.पी. राव और पूर्ववर्ती रायपुर जिले के कलेक्टर डॉ. रोहित यादव भी उपस्थित थे। मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम में नये जिले के मानचित्र का अनावरण किया। उन्होंने विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत हितग्राहियों को राशि और सामग्री का भी वितरण किया।
    समारोह की अध्यक्षता करते हुए रायपुर लोकसभा क्षेत्र के सांसद श्री रमेश बैस ने कहा कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में प्रदेश में मात्र चार वर्ष के भीतर ग्यारह नये जिलों का निर्माण हुआ। यह नये छत्तीसगढ़ राज्य की एक बड़ी उपलब्धि है। सांसद श्री बैस ने कहा कि अब तो छत्तीसगढ़ सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं की चर्चा लोकसभा में भी होती है, उस समय छत्तीसगढ़ के हम सांसदों का सीना गर्व से फूल जाता है। निश्चित रूप से इसका श्रेय डॉ. रमन सिंह की सरकार को दिया जाना चाहिए। श्री बैस ने कहा कि अटल जी ने देश में छत्तीसगढ़ सहित तीन नये राज्यों का निर्माण किया, जिनमें आज छत्तीसगढ़ विकास के हर क्षेत्र में तेजी से आगे बड़ रहा है। छत्तीसगढ़ के लोग इस बात के गवाह हैं कि अटल जी ने राज्य बनाकर अपना वायदा पूरा किया है। छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण शांतिपूर्ण ढंग से हुआ है। ठीक उसी तरह डॉ. रमन सिंह ने प्रदेश की जनता को नये जिलों की सौगात दी है। ये नये जिले भी शांतिपूर्ण ढंग से निर्मित हुए हैं, जो एक नया कीर्तिमान है। स्कूल शिक्षा और लोक निर्माण मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि आज गरियाबंद में एक नया इतिहास लिखा जा रहा है। देश में छत्तीसगढ़ के अलावा अब तक कोई भी ऐसा राज्य नहीं है, जिसने एक दिन में एक साथ नौ नये जिलों का निर्माण किया हो। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सरकार ने ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया है। श्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि गरियाबंद नदियों, पहाड़ों और जंगलों से घिरा छत्तीसगढ़ का सबसे सुन्दर जिला होगा। उन्होंने भी छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण में श्री अटल बिहारी वाजपेयी और जिलों के निर्माण में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के शानदार योगदान का विशेष रूप से उल्लेख किया । कृषि और श्रम मंत्री श्री चन्द्रशेखर साहू ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने वर्ष 2000 में देश के मानचित्र पर नये छत्तीसगढ़ राज्य को रेखांकित किया, और अब डॉ. रमन सिंह की सरकार ने छत्तीसगढ़ के मानचित्र को मात्र चार वर्ष में ग्यारह नये जिले दिए। श्री चन्द्रशेखर साहू ने यह भी कहा कि नया छत्तीसगढ़ राज्य भारत का सिरमौर बनेगा, वहीं नया गरियाबंद जिला छत्तीसगढ़ का सिरमौर होगा। लोकसभा सांसद श्री चन्दूलाल साहू ने भी समारोह को सम्बोधित किया।
    उल्लेखनीय है कि यह नया गरियाबंद जिला रायपुर जिले को पुनर्गठित कर बनाया गया है, जो आम जनता के लिए सामाजिक-आर्थिक विकास की नई उम्मीदों के साथ-साथ पर्यटन की अपार संभावनाओं से भी परिपूर्ण है। पैरी नदी के आंचल में हरे-भरे सघन वनों और पहाड़ियों के मनोरम प्राकृतिक दृश्यों से सुसज्जित नये गरियाबंद जिले में धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक महत्व के अनेक स्थानों और नैसर्गिक झरनों आदि को देखते हुए यहां पर्यटन की भी असीम संभावनाएं हैं। इस नये जिले का निर्माण 690 गांवों, 306 ग्राम पंचायतों और 158 पटवारी हल्कों को मिलाकर किया गया है। जमीन के ऊपर बहुमूल्य वन सम्पदा के साथ-साथ यह नया जिला अपनी धरती के गर्भ में अलेक्जेण्डर और हीरे जैसी मूल्यवान खनिज सम्पदा को भी संरक्षित किए हुए है। गिरि यानी पर्वतों से घिरे होने (बंद होने) के कारण संभवत: इसका नामकरण गरियाबंद हुआ। पहले यह रायपुर राजस्व जिले में शामिल था। नये गरियाबंद जिले की कुल जनसंख्या पांच लाख 75 हजार 480 है। लगभग चार हजार 220 वर्ग किलोमीटर के भौगोलिक क्षेत्रफल वाले इस जिले में दो हजार 860 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र और एक हजार 360 वर्ग किलोमीटर राजस्व क्षेत्र है। नये गरियाबंद जिले का कुल वन क्षेत्र लगभग 67 प्रतिशत है। इस नये जिले में वन्य प्राणियों सहित जैव विविधता के लिए प्रसिध्द उदन्ती अभ्यारण्य भी है। इस अभ्यारण्य के नाम से वन विभाग का उदन्ती वन मण्डल भी यहां कार्यरत है। यहां खेती का रकबा एक लाख 35 हजार 823 हेक्टेयर है। धान यहां की मुख्य फसल है। वैसे जिले के देवभोग और मैनपुर क्षेत्र में उड़द, मूंग, तिल, अरहर और मक्के के भी खेती होती है। इस अंचल के लोगों की यह मान्यता है कि पुरी के भगवान जगन्नाथ को भोग लगाने के लिए चावल इस जिले के देवभोग क्षेत्र से भेजा जाता था। देवभोग के चावल की लोकप्रियता आज भी बरकरार है। गरियाबंद जिले का गठन पांच तहसीलों (विकासखण्डों) फिंगेश्वर (राजिम), गरियाबंद, छुरा, मैनपुर और देवभोग को मिलाकर किया गया है। जिले में चार नगर पंचायत गरियाबंद, छुरा, फिंगेश्वर और राजिम शामिल हैं। इस नये जिले की उत्तर-पूर्वी सीमा छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जिले से और उत्तर-पश्चिमी सीमा रायपुर जिला लगी हुई है। इसके दक्षिण में राज्य का धमतरी जिला लगा हुआ है, जबकि पूर्व और दक्षिण में इसकी सरहद ओड़िशा राज्य के नुआपाड़ा और नवरंगपुर जिले से लगती है। नया गरियाबंद जिला मुख्य रूप से आदिवासी बहुल जिला है। नये गरियाबंद जिले के तीन विकासखण्ड- छुरा, गरियाबंद और मैनपुर आदिवासी बहुल विकासखण्ड हैं, जबकि फिंगेश्वर और देवभोग सामान्य श्रेणी के विकासखण्ड हैं। जिले की जीवन रेखा पैरी नदी का उद्गम विकासखण्ड मैनपाठ के ग्राम भाटीगढ़ में है।
    विशेष पिछड़ी कमार और भुंजिया जनजाति के लोग भी गरियाबंद जिले में निवास करते हैं। राज्य शासन द्वारा इनके सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए कमार विकास अभिकरण और भुंजिया विकास अभिकरण का गठन करने के बाद कई योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। गरियाबंद जिले में कमारजनजाति की जनसंख्या 13 हजार 459 और भुंजिया जनजाति की जनसंख्या मात्र तीन हजार 645 है। छत्तीसगढ़ के महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के पवित्र संगम पर स्थित देश का प्रसिध्द तीर्थ राजिम भी अब रायपुर जिले से नये गरियाबंद जिले में शामिल हो गया है, जो भगवान राजीव लोचन और कुलेश्वर महादेव के प्रसिध्द मंदिरों के लिए भी अपनी खास पहचान रखता है। माघ पूर्णिमा का परंपरागत राजिम मेला राज्य शासन के सहयोग से अब 'राजिम कुंभ' के नाम से भी देश-विदेश में प्रसिध्द हो गया है। इसके अलावा नये गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर विकासखण्ड (तहसील) में ग्राम कोपरा स्थित कोपेश्वर महादेव, फिंगेश्वर स्थित कर्णेश्वर महादेव और पंचकोशी महादेव सहित विकासखण्ड छुरा में ग्राम कुटेना में सिरकट्टी आश्रम, जतमई माता का मंदिर ओर घटारानी का पहाड़ी मंदिर तथा जल प्रपात भी इस जिले की सांस्कृतिक और नैसर्गिक पहचान बनाते हैं। नये गरियाबंद जिले में पैरी नदी पर निर्मित सिकासार जलाशय सहित उदन्ती अभ्यारण्य, देवधारा (मैनपुर) और घटारानी के जल प्रपात यहां सैलानियों को यहां आकर्षित करते रहे हैं। यह वनों से आच्छादित जिला है। वर्तमान में यहां दो वन मण्डल क्रमश: सामान्य वन मण्डल (उत्तर रायपुर) और उदन्ती वन मण्डल कार्यरत हैं। उदन्ती वन मण्डल को उदन्ती अभ्यारण्य के नाम से भी जाना जाता है। इसका कुल क्षेत्रफल एक हजार 842 वर्ग किलोमीटर है। यह वन क्षेत्र छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु 'वन भैंसा' के लिए भी प्रसिध्द है। प्रदेश के इस राजकीय पशु संरक्षण और संवर्धन के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। उदन्ती अभ्यारण्य में एक आकर्षक जल प्रपात है, जो गोड़ेना जल प्रपात के नाम से जाना जाता है। वहां पर भी पर्यटन विकास की अपार संभावनाएं हैं।
    सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्व की दृष्टि से देखा जाए तो नये गरियाबंद जिले को अनेक प्रसिध्द हस्तियों की जन्म भूमि और कर्म भूमि होने का गौरव प्राप्त है। इस जिले की तीर्थ नगरी राजिम नगरी में महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और साहित्यकार पंडित सुन्दरलाल शर्मा ने राष्ट्रीय जागरण का ऐतिहासिक कार्य किया। सन्त कवि पवन दीवान ने अपनी ओजस्वी कविताओं के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ की पहचान बनायी। वह आज भी साहित्य और आध्यात्म के माध्यम से समाज सेवा में लगे हुए हैं। राजिम प्रसिध्द कहानीकार और उपन्यासकार स्वर्गीय श्री पुरूषोत्तम अनासक्त की भी रचना भूमि है।