Wednesday, May 23, 2012

मालगांव पहाड़ी पर ही बनेगा कलेक्टोरेट

                                                    मालगाव के पहाड़ी के ऊपर से मनोरम नजारा 






जिला बनने के चार माह के बाद अब यह तय हो गया है कि कलेक्टर का स्थायी दफ्तर मालगांव की पहाड़ी पर ही बनेगा। कलेक्टर दिलीप वासनीकर की मौजूदगी में अधिकारियों की मंगलवार को हुई है बैठक में अधिकारियों ने एक राय होकर इसकी घोषणा की। वर्तमान ने कलेक्टर का अस्थायी दफ्तर कालेज भवन से संचालित हो रहा है। 

बैठक में राज्य शासन को एक सप्ताह के भीतर कंपोजिट जिला कार्यालय का भवन बनाने का प्रस्ताव भेजने का निर्णय लिया गया। मालगांव पहाड़ी में करीब 110 एकड़ शासकीय भूमि है। इस स्थल पर कलेक्टर भवन के समस्त दफ्तर बनाने सभी अधिकारियों की राय ली गई। आखिर में आमराय से नगर में जगह की कमी के चलते पहाड़ी को कलेक्टोरेट के लिए उपयुक्त माना गया। कलेक्टर ने जल संसाधन के कार्यपालन यंत्री विजयकुमार शेष त्न पेज १६ 

वच्छानी और पीएचई के नोडल अधिकारी जीएल गुप्ता को मालगांव पहाड़ी के नीचे एनीकट बनाकर ऊपर जिला कार्यालय भवन व गरियाबंद शहर को पानी प्रदान करने के संबंध में प्रोजेक्ट तैयार करने के निर्देश दिए। 

उल्लेखनीय है कि मालगांव पहाड़ी में स्थायी दफ्तर बनाने संघर्ष समिति तक बनाई गई, जिसने अनेक बार प्रशासन को ज्ञापन भी दिया। रायपुर कलेक्टर रोहित यादव ने तो पहले ही मालगांव पहाड़ी को जिला कार्यालय बनाने फाइनल कर दिया था। गरियाबंद से चार किमी दूर पैरी नदी के बाद पहाड़ी स्थित है। यहां जाने के लिए वर्तमान में कच्ची सड़क है। यह स्थान राज्यमार्ग से लगा हुआ है। जिससे यहां तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए यही कलेक्टर दफ्तर बनाने का निर्णय लिया गया। यह पहाड़ी खूबसूरत लोकेशन में है। कई बार सर्वे करने के बाद अधिकारियों ने मालगांव पहाड़ी को ही जिला दफ्तर बनाने के लिए चयनित किया है। 

Tuesday, May 15, 2012

गर्मी में आम लोगों की भ्रांति ही पशु-पक्षी भी पानी के लिए तरस रहे हैं।

 गर्मी में आम लोगों की भ्रांति ही पशु-पक्षी भी पानी के लिए तरस रहे हैं। भटक रहे हैं।तेज धूप व वाष्पीकरण से नदी, तालाब का जल स्तर तेजी से घट रहा है। इससे आम लोगों के साथ ही पशु-पक्षी भी पानी के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं। इस दौरान पशु-पक्षी भी पानी की खोज में रहते हैं। गांव में गिरते भू-जलस्तर और मानसून के लेट आने से सभी ग्रामीण चिंतित हैं। ग्राम नहरगांव के तालाब में पानी कम है। 
 तालाब में काफी संख्या में मवेशी जमा रहते हैं।
  यहां किसान नदी, नाले में बोर कर खेतों की प्यास बुझा रहे हैं। 
  गांव के छह मासी नाला में किसान बोर कर रबी फसल की सिचाई में पानी का उपयोग कर रहे हैं। इस ब्लॉक के तहत कई गांव हैं।
 गर्मी में आम लोगों की भ्रांति ही पशु-पक्षी भी पानी के लिए तरस रहे हैं। भटक रहे हैं। पानी के लिए संघर्ष करते ऐसे पशु, पक्षियों को इस समय आसानी से देखा जा सकता है। जिला मुख्यालय के पास शनिवार के दोपहर में ग्राम नागाबुड़ा की बोलती ये तस्वीरें कुछ यहीं बयां करती हैं। तालाब के किनारे काफी संख्या में पक्षी एकत्र होकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं। 
        
 नागाबुड़ा तालाब में सड़क के किनारे पक्षी इक्ट्ठा हुए हैं। अपनी प्यास बुझाकर ये पक्षी पानी में अंगड़ाइयां लेते रहते हैं

साल बीज के संग्रहण में जुटे ग्रामीण



अंचल के बीपीएल परिवार और गरीबों का एक मात्र कमाई का जरिया वनोपज संग्रहण कर जीविकोपार्जन करना है। गर्मी में ग्रामीण महुआ, तेंदूपत्ता व साल बीत का संग्रहण करते हैं। पिछले बीस दिनों से जंगल में ग्रामीण तेंदूपत्ते की तोड़ाई कर रहे थे। अब पत्ता कम होने से साल बीज संग्रहण के कार्य में ग्रामीण जुट गए हैं।

  साल बीज की विदेशों में बारी डिमांड है। पूर्व वन मंडल उदंती में साल के वृक्षों की बहुतायत है। साल बीज की खरीदी वन समिति के माध्यम से की जाती है। जानकारों के मुताबिक साल बीज का उपयोग साबुन व चाकलेट बनाने में किया जाता है। इंग्लैंड व जापान में नारियल के मक्खन व चाकलेट उद्योग में बखूबी किया जाता है। 
 साल बीज से हिंदुस्तान में चाकलेट बनाने की अनुमति नहीं है। लिहाजा विदेशों में ही साल बीज से चाकलेट बनाया जाता है। साल बीज का साल्वेंट सयंत्र में प्रसंस्करण कर तेल निकाला जाता है।

           साल बीज की 500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से समिति के माध्यम से खरीदी प्रारंभ हो गई है।