Sunday, August 28, 2011

लोकतंत्र के हृदय में

हमारे लोकतंत्र के हृदय में एक कैंसर घर कर गया है : हमारी निर्वाचन प्रणाली वैध कोषों की बजाय काले धन से चलती है। नेताओं के तहत आने वाले संस्थान यह जानते हैं और अपनी व्यवस्थाएं जमा लेते हैं। सीबीआई जब अपनी पसंद के मौसमी लक्ष्य तक पहुंचना चाहती है, तो बहुत उग्र और कठोर हो सकती है, लेकिन इसे दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में प्रत्येक झोपड़ी से हर महीने डेढ़ सौ रुपए वसूलने वाले अपने उन साथी पुलिसियों पर लगाम कसने में कोई दिलचस्पी नहीं, जो यह पक्का करने के पैसे लेते हैं कि जलआपूर्ति में बाधा नहीं आएगी। गरीबों को माफ नहीं किया जाता, क्योंकि जाहिर है, वे अािर्थक तौर पर विपन्न हैं। आप जिधर भी निगाह डालें, नकद लेन-देन के बोटोक्स इंजेक्शन के कारण प्रशासन फूला हुआ नजर आएगा।

अकेला शख्स जो भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहता है, अन्ना हजारे हैं। जैसा कि उन्होंने एक बार बड़े चटखारेदार अंदाज में इंगित किया था कि वे तो चुनाव लडऩे का खर्च ही नहीं उठा सकते।

यह बहस संकट की जड़, यानी चुनावी भ्रष्टाचार पर ध्यान केंद्रित किए बगैर समाधान सुझाने वाले अनगिनत प्रस्तावों के बीच डगमगा रही है। राजनीतिक जमात कारोबारियों, जजों, नौकरशाहों (जिला स्तर से नीचे) समेत उन तमाम लोगों के भ्रष्टाचार की जांच के लिए जुट गई है, जिनके बारे में आप सोच सकते हैं। लेकिन जब स्वयं के अवलोकन की बात आती है, तो इकट्ठा हुई जमात छितराने लगती है। निस्संदेह, यह ऐसे लोकपाल पर विमर्श नहीं करेगी, जिसके पास राजनीति में धन के प्रवाह की पड़ताल करने की ताकत हो।

बहाने तो यहां हमेशा मौजूद रहते हैं, विशेषकर निर्वाचन आयोग, जो कथित तौर पर सत्यनिष्ठा का संरक्षक है। यह उसी तरह है, जैसे कहा जाता है कि न्यायपालिका का अस्तित्व है। पुलिस और जज अपराध रोकने के लिए बनाए गए थे। अगर उन्होंने ऐसा किया होता, तो आज कोई बहस ही नहीं होती। निर्वाचन आयोग अपने इरादों में पूरी पारदर्शिता से गंभीर है, लेकिन चुनौतियां इसे अधिकार में मिली क्षमताओं से कहीं बढ़कर हैं। अगर आप इस बारे में हल्का सा अंदाजा ही चाहते हैं कि राजनीति में किस स्तर तक धन व्याप्त है, तो नेताओं के प्रकाशित बयानों को ही पढ़ लीजिए। आंध्रप्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष ने दावा किया है कि जगन रेड्डी से जुडऩे के लिए जिन विधायकों ने उनकी पार्टी छोड़ी, उनमें से हर को नकद 10 करोड़ रु. दिए गए हैं। इसे तथ्य की तरह मत देखिए। यदि नकदी ही वफादारी की अकेली गारंटी होती, तो कांग्रेस में इतनी क्षमता है कि हर विपक्षी पार्टी को खरीद ले। हां, यह दावा दर्शाता है कि किस श्रेणी की पेशकाश होती हैं।

मुझे उम्मीद है, किसी को भी इस बात पर भरोसा नहीं होगा कि चुनावी भ्रष्टाचार का उपचार राज्य द्वारा इसके लिए कोष बनाए जाने में निहित है। यह तो करदाताओं के धन को कभी तृप्त न होने वाले कुंड में भरते जाना होगा। यह बजटों को बढ़ाएगा, न कि उन्हें कम करेगा।

अन्ना हजारे के संकल्प और साहस ने कांग्रेस को अशक्त तो किया है, लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन अस्थिर नहीं हुआ है। गृहमंत्री पी. चिदंबरम के नेतृत्व में कांग्रेस के जवाबी हमले के तहत अन्ना को तिहाड़ जेल पहुंचा दिया गया, तब पता चला कि उसके ‘पीडि़त’ को लोहे को भी सोने में बदल देने वाली कीमियागरी आती है। कांग्रेसी व्याकुलता इस बात से मापी जा सकती है कि ताजा बहस में सबसे तेज शोर चिदंबरम की मौन ध्वनि का है। कांग्रेस को यह समझ पाने में हैरानी भरे कुछ पल लगे कि इस आंदोलन की पहुंच सतह पर हो रही ट्विटरी गतिविधियों से कहीं ज्यादा गहरी है। गरीब जानते हंै कि अन्ना हजारे उनमें से ही एक हैं, हालांकि उनके सहयोगी ऐसे हो भी सकते हैं और नहीं भी। उन्हें इस बात से लेना-देना नहीं कि उनके सलाहकार कौन हैं। वे उनके पीछे जुट चुके हैं और यही उनके लिए पर्याप्त है। अन्ना की निजी साख पर बट्टा लगाने की कोशिश के चलते कांग्रेस ने ज्यादा सहानुभूति खोई। परंतु, विसंगति है कि यह मतदाताओं पर अन्ना-असर का ही डर है, जो सत्तारूढ़ गठबंधन की सलामती सुनिश्चित कर रहा है। अत:, अन्ना सरकार को हिला भी रहे हैं और उसकी निरंतरता भी पक्की कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री को एक अलग सवाल का जवाब जरूर देना चाहिए : सरकार चलाने की क्षमता के बगैर वे कितने लंबे समय तक पद पर बने रह सकते हैं? वे अपना आखिरी चुनाव लड़ चुके हैं। वे चुनावी मजबूरियों और समझौतों से मुक्त हैं। यह अमेरिकी राष्ट्रपति के दूसरे कार्यकाल की तरह है, जहां उसे पार्टी को तो दिमाग में रखना पड़ता है, लेकिन ज्यादा बड़े सम्मोहन, यानी पुन: चुनाव लडऩे की जरूरत जैसी कोई बात नहीं होती। इस सुअवसर का ज्यादातर हिस्सा खो दिया गया है। क्या बाकी बचा हिस्सा भी गंवा दिया जाएगा?

Wednesday, August 24, 2011

कचनाध्रुवा क्षेत्र की पहचान

प्राचीन गोड़ राजाओं की रियासत में होगी अब सत्ता की राजनीति

बिंद्रानवागढ़ रियासत के वीर सपूत कचनाध्रुवा को 1903 में बेहतर जमीदारी प्रथा लागू करने के लिए अंग्रेजों के शासनकाल में दिल्ली के लाल किले में एवार्ड से सम्मानित किया गया था। उस समय इस रियासत में 464 ग्राम हुआ करते थे।

पांडुका से लेकर देवभोग तक रियासत का क्षेत्र था। कचनाध्रुवा वीर सपूत का क्षेत्र जनवरी 2012 में नए जिले के रूप में छत्तीसगढ़ के मानचित्र में उभरकर सामने आ जाएगा। गोड़ राजाओं के रियासत में सियासत की राजनीति होगी। प्रस्तावित गरियाबंद नए जिले में राजिम सामान्य, बिंद्रानवागढ़ विधानसभा पड़ेगा। बिंद्रानवागढ़ के नाम से तो तहसील बना है।

उल्लेखनीय है कि कचनाध्रुवा वीर सपूत की महत्ता आज भी वर्षों से बरकरार है। आम लोग इन्हें पूजनीय मानते हैं। जगह-जगह कचनाध्रुवा देवालय के रूप में स्थापित किया गया है। मार्ग से आने-जाने वाले लोग ग्राम बारूका, छुरा मार्ग, नवागढ़, राजपड़ाव के पहले, ध्रुवागुड़ी मार्ग पर स्थित कचनाध्रुवा देवालय में श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। राजधानी मार्ग, छुरा मार्ग, देवभोग मार्ग पर पहाड़ी स्थान पर ही ये देवालय है। गरियाबंद से 12 किमी दूर राजधानी मार्ग के कचनाध्रुवा देवालय में बिजली तक पहुंच गई है। इस नए जिले में कचनाध्रुवा की महत्ता मौजूद रहेगी, बिंद्रानवागढ़ रियासत के कचनाध्रुवा राजा थे। इनके परिवार का फिंगेश्वर स्थित राजमहल शान कहलाएगा। कचनाध्रुवा वीर सपूत की कहानी यह है कि वर्षों तक सियासत की आज भी निशानी है। इनका बिलाई माता से प्रेम संबंध था, बिलाई माता के परिवार ने इसे स्वीकार नहीं करते हुए कचनाध्रुवा का वध कर दिया। इनका सिर और धड़ अलग कर दिया था, चूंकि पटवागढ़ उड़ीसा से कचनाध्रुवा राजा यहां आए थे। ये वहां वीर सैनिक कहलाते थे, इसलिए उड़ीसा के चांदाहड़ी सड़क मार्ग पर कचनाध्रुवा देवालय स्थापित है। वर्तमान गरियाबंद का तहसील दफ्तर, देवभोग, मैनपुर, नवागढ़, पोड़ में रजवाड़ा का मालखाना था, इसमें से कई मालखाना खंडहर में तब्दील हो गया है। बताया जाता है कि नवागढ़ के टीले में चिंड़ा लोगों के साथ सामान्य युद्ध तक हुआ था।

Friday, August 19, 2011

गरियाबंद राजस्व जिला

गरियाबंद राजस्व जिला बनने का सपना साकार हो गया है। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने गरियाबंद को जिले की सौगात दे दी है। गरियाबंद के जिला बनने से जनता खुश हैं। चार माह बाद, एक जनवरी 2012 नए वर्ष में गरियाबंद के रूप में नया जिला बन जाएगा। इस पांच ब्लाक के जिले में विकास की बहुत संभावना है। आदिवासी व वनवासियों की उन्नति होगी। यहां के 80 प्रतिशत किसानों का भला होगा। पिछड़ी जनजाति कमार, भुंजिया, लोग विकास की मुख्य धारा से जुड़ेंगे। जिला बनाने की मांग लंबे समय से लंबित थी।
जिले में दो विधानसभा होंगी, राजिम व बिंद्रानवागढ़। वर्तमान में बिंद्रानवागढ़ से डमरूधर पुजारी (भाजपा) व राजिम से अमितेश शुक्ल (कांग्रेस) विधायक हैं। नक्सली चुनौती के बीच विकास का पड़ाव तय करना है। राजनीतिक माहौल भी बदलेगा। बुनियादी समस्याएं हल होंगी। यहां पुलिस जिला मुख्यालय के दफ्तर के अलावा जलसंसाधन, पीडब्लूडी का संभागीय दफ्तर पहले से है। यहां उदंती वनमंडल का कार्यालय है, पूर्व वनमंडल का रायपुर दफ्तर गरियाबंद आ जाएगा। यहां के लोगों को जिले के अफसरों से मिलने 90 किमी दूर नहीं जाना पड़ेगा।जिले की धरोहर मैनपुर, देवभोग के हीरा खदान, एलेक्जेंडर खदान माने जाएंगे। यहां के पायलीखंड, बेहराडीह, कोदोमाली, सेंडमुड़ा में कीमती पत्थर पाए जाते हैं। उदंती अभयारण्य के राजकीय पशु वनभैंसे की एक अलग पहचान होगी। पर्यपर्यटन विकास की संभावना बढ़ गई है। क्षेत्र में धार्मिक महत्व के भूतेश्वरनाथ मंदिर, राजिम कुंभ, जतमई मंदिर, रमईपाठ मंदिर, गरजईमंदिर, घटारानी मंदिर का और विकास होगा। सही मायने में अब अमीर धरती के गरीब लोग विकास के पथ पर आगे बढेंग़े। एक माह पहले विधायक डमरूधर पुजारी ने सीएम डा. सिंह से गरियाबंद को जिला बनाने की मांग की थी। माना जा रहा है कि उनकी मांग रंग लाई।

गरियाबंद जिला क्षेत्रफल की दृष्टि से बड़ा होगा, सड़क मार्ग की दृष्टि से जिले की लंबाई 175 किमी होगी। पहले देवभोग से रायपुर जिले की दूरी 250 किमी थी। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि अब क्षेत्र की जनता की समस्याओं का निपटारा जल्दी होगा। विकास से क्षेत्र की तस्वीर बदलेगी। वैसे तो राज्य निर्माण के पिछले 10 सालों में क्षेत्र का विकास हुआ है। भौगोलिक व प्रशासनिक ढांचे के हिसाब से गरियाबंद अनुविभाग की जनसंख्या 5 लाख से अधिक है। 20890 वर्ग किमी क्षेत्र फल में 5 तहसीलें राजिम, गरियाबंद, मैनपुर, देवभोग, छुरा हैं। इन्हें ब्लाक का दर्जा प्राप्त है। चार नगरपंचायत गरियाबंद, छुरा, फिंगेश्वर, राजिम हैं। इसके अलावा 435 ग्राम पंचायतें, 7 पुलिस थाना, 10 मुख्य चिकित्सालय, 90 बाध, 6 कालेज, अतिरिक्त जिला व सत्र न्यायालय, अपर कलेक्टर के पद की स्थापना हो चुकी है।
टन विकास की संभावना बढ़ गई है। क्षेत्र में धार्मिक महत्व के भूतेश्वरनाथ मंदिर, राजिम कुंभ, जतमई मंदिर, रमईपाठ मंदिर, गरजईमंदिर, घटारानी मंदिर का और विकास होगा। सही मायने में अब अमीर धरती के गरीब लोग विकास के पथ पर आगे बढेंग़े। एक माह पहले विधायक डमरूधर पुजारी ने सीएम डा. सिंह से गरियाबंद को जिला बनाने की मांग की थी। माना जा रहा है कि उनकी मांग रंग लाई।

गरियाबंद जिला क्षेत्रफल की दृष्टि से बड़ा होगा, सड़क मार्ग की दृष्टि से जिले की लंबाई 175 किमी होगी। पहले देवभोग से रायपुर जिले की दूरी 250 किमी थी। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि अब क्षेत्र की जनता की समस्याओं का निपटारा जल्दी होगा। विकास से क्षेत्र की तस्वीर बदलेगी। वैसे तो राज्य निर्माण के पिछले 10 सालों में क्षेत्र का विकास हुआ है। भौगोलिक व प्रशासनिक ढांचे के हिसाब से गरियाबंद अनुविभाग की जनसंख्या 5 लाख से अधिक है। 20890 वर्ग किमी क्षेत्र फल में 5 तहसीलें राजिम, गरियाबंद, मैनपुर, देवभोग, छुरा हैं। इन्हें ब्लाक का दर्जा प्राप्त है। चार नगरपंचायत गरियाबंद, छुरा, फिंगेश्वर, राजिम हैं। इसके अलावा 435 ग्राम पंचायतें, 7 पुलिस थाना, 10 मुख्य चिकित्सालय, 90 बाध, 6 कालेज, अतिरिक्त जिला व सत्र न्यायालय, अपर कलेक्टर के पद की स्थापना हो चुकी है।